शरद शीत प्रचंड सखी रे / मुकेश कुमार यादव
शरद शीत प्रचंड सखी रे।
हिम-कण उदंड सखी रे।
सूक्ष्म-सघन हिम-कण।
बरसै छै बिजुवन।
रुई रंग सफेद कण।
छुवै में कन-कन।
बदलै प्रकृति रंग सखी रे।
शरद शीत प्रचंड सखी रे।
खेत-खलिहान।
सांझ-विहान।
मजदूर-किसान।
ठिठुरी करै काम।
हंसी-खुशी-उमंग सखी रे।
शरद शीत प्रचंड सखी रे।
देश रो शान।
सीमा पर जवान।
बिना डरै।
दिन-रात खड़ै।
दुश्मन से लड़ै।
विधि-विधान-लिखंत सखी रे।
शरद शीत प्रचंड सखी रे।
सब रो हाल बेहाल छै।
दीन-दुःखी के मलाल छै।
शीत लहर बबाल छै।
जिनगी रो जपाल छै।
कांनै कीट-पतंग सखी रे।
शरद शीत प्रचंड सखी रे।
सबेरे-सबेरे।
ठंडा टेरै।
हवा फेरै।
तंग करै।
धवल शीत मतंग सखी रे।
शरद शीत प्रचंड सखी रे।
थर-थर कांपै जियरा।
शोर मचाबै पपीहरा।
सरसौ फूल पियरा।
हँसै खिलै।
देखी मन दंग सखी रे।
शरद शीत प्रचंड सखी रे।
पिनो लबादा।
बदलो इरादा।
सूरज दादा।
नञ् तोड़तौं वादा।
जारी राखो जंग सखी रे।
शरद शीत प्रचंड सखी रे।
कांपलो हाथ।
खोजै आग।
पूस रो रात।
रात भर जागी।
बेबस-दीन-निर्धन सखी रे।
शरद शीत प्रचंड सखी रे।
धीरे-धीरे धूप खिलै।
चारों ओर ख़ूब खिलै।
गर्मी लागै।
ठंडी दूर भागै।
मन उड़ै पतंग सखी रे।
शरद शीत प्रचंड सखी रे।