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शरद शीत भाय / मुकेश कुमार यादव
Kavita Kosh से
शरद शीत भाय।
दुल्हन रंग शरमाय।
एकबार के बात।
छेलै चांदनी रात।
भोर के वेला।
बड़ा अलबेला।
शीत कण।
लागै मगन।
प्रसन्न चित्त।
बड़ी विचित्र।
सूरज देखी गेलै विलाय।
शरद शीत भाय।
भोर
शीत करै शोर।
कहीं-कहीं इंजोर।
अन्हार पुरजोर।
मन गेलै भरमाय।
शरद शीत भाय।
रात-
दिल रो बात।
हसीन मुलाकात।
बनी सहेली।
पूछै पहेली।
नींद उड़ाय।
सपना देखाय।
मन भरमाय।
शरद शीत भाय।
सांझ-
बांचे लागलै ज्ञान।
मान-सम्मान।
खीची ध्यान।
करी कल्याण।
हित-अहित।
सोची-समझी।
रस्ता रहै देखाय।
शरद शीत भाय।