शराब के नशे में / अच्युतानंद मिश्र
शराब के नशे में धुत एक आदमी
दुतकारता है जिन्दगी को
कहता है लौट जाऊंगा
मैं अपने घर
तीन आंगन वाले अपने घर
वहां धूप होगी
सकुचाती हुई
चूमती हुई माथा
उतरेगी शाम
शराब के नशे में धुत आदमी
अपने रतजगे में बुहारता है
सबसे ठंडी रात को
पृथ्वी से बाहर
वह लिखता है इस्तीफा
पढता है ऊँची आवाज़ में
मुझे तबाह नहीं करनी अपनी जिंदगी
लानत भेजता हूँ ऐसी नौकरी पर
सुबकते हुए कहता है
लौट जाऊंगा अपने गाँव
खटूंगा अपने खेतों में
चुकाऊंगा ऋण धरती का
दिन की रौशनी में
स्कूल बस पर बेटी को बिठाने के बाद
वह पत्नी की आँखों में ऑंखें डालकर
कसम खाता है
वह शराब को कभी हाथ नहीं लगाएगा
मुस्कुराती हुई पत्नी को
वह दुनिया की
सबसे खूबसूरत औरत कहता है
और चला जाता है ......
काम पर