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शहर में नींद / स्वप्निल श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
इस शहर में वह
एक नींद लेना चाहता है
जो उसके लिए मुश्किल काम है
क्या पता नींद लगे
और हत्यारे उसकी नींद में
प्रवेश कर जाएँ
वह सपनों की दुनिया में जाने से पहले
हो जाए हमेशा के लिए नींद से वंचित
यह शहर जो कभी
उसका अपना शहर था
दुश्मनों के हाथ पड़ गया है
इस स्वप्नविहीन शहर में
नींद एक वर्जित कल्पना है