भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
शहर में साँप / 17 / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय
Kavita Kosh से
एक दिन साँप
भगवान शंकर केॅ गला से
नीचे ससैर रहल रहै
भगवान ने
ओकरा झट से पकैड़केॅय
पूछलकै कहाँ जाय छी
वैं कहलकै
भगवान भागो आरोॅ भागै देॅय
मंदिर में शहर के आदमी आय गेलै।
अनुवाद:
एक दिन साँप
भगवान शंकर के गले से
नीचे सरक रहाथा
तो भगवान ने
उसे झट से पकड़ लिया
पूछा, कहाँ जा रहे हो?
उसने कहा
भगवान भागिये, और भागने दीजिए
मंदिर में शहर का आदमी आ गया है।