भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

शहर में साँप / 21 / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

साँप
मस्त होय केॅ ससैर रहल छै
दूसरों ने कहलकै
भाग आदमी आय रहल छै
वैं/जैहनें घुइमकेॅ देखलकेॅ
आदमी पीछू-पीछू आरो
ओको जहर
आगू-आगू चैल रहल रहै।

अनुवाद:

साँप
मस्ती में हो कर सरक रहा था
दूसरे ने कहा-
भागो आदमी आ रहा है।
उसने/ज्यों ही मुड़ कर देखा
आदमी पीछे-पीछे था
लेकिन उसका जहर
आगे-आगे चल रहा था।