भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
शहर में साँप / 46 / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय
Kavita Kosh से
साँप सरपट भागल जाय रहै
आदमी नेॅ ओकरा कहलकै
कियै भाग रहलैं
साँप कहलकै
हम्में आदमी थोड़े छिकियै
जे राह में मुँह मारतेॅ चलौं।
अनुवाद:
साँप सरपट भागा जा रहा था
आदमी ने उससे कहा
क्यों भागे जा रहे हो
साँप ने कहा
मैं आदमी नहीं हूँ
जो रास्ते में मुँह मारते चलूँगा।