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शहर में साँप / 46 / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय

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साँप सरपट भागल जाय रहै
आदमी नेॅ ओकरा कहलकै
कियै भाग रहलैं
साँप कहलकै
हम्में आदमी थोड़े छिकियै
जे राह में मुँह मारतेॅ चलौं।

अनुवाद:

साँप सरपट भागा जा रहा था
आदमी ने उससे कहा
क्यों भागे जा रहे हो
साँप ने कहा
मैं आदमी नहीं हूँ
जो रास्ते में मुँह मारते चलूँगा।