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शहर में साँप / 56 / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय
Kavita Kosh से
साँप के मीटिंग चैल रहल रहै
गेट पर लिखल रहै
आदमी केॅ भीतर जाय लेॅ मना छै
तइयो/एक आदमी भीतर घुइस गेलै
वै समय/वैं सबनेॅ
एक स्वर में कैह रहल रहै
पैहने अपन भलाई के बात कर
तब आदमी के बारे में सोचल कर
ऊ जैहने ई बात सुनलकै
उलटे पाँव लौट गेलै
मनेमन कहलकै
आखिर ई सब तेॅ साँपे छिकै।
अनुवाद:
शहर में
साँपों की मीटिंग चल रही थी
गेट पर लिखा था
आदमी का भीतर जाना मना है
फिर भी/एक आदमी भीतर घुस गया
उस समय/वे सभी
एक स्वर में बोल रहे थे
पहले अपने भलाई की बात करो
तब आदमी के बारे में सोचो
उसने ज्यों ही वह बातें सुनीं
उलटे पाँव लौट आया
मन-ही-मन कहा
आखिर वे सब साँप ही तो हैं।