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शाम / प्रभात

Kavita Kosh से
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धीमा पड़ गया है सुनने और देखने के कारख़ाने का संगीत
मंद पड़ गई है पेड़ों की सरसराहट की रोशनी
आपस में मिल गए हैं दुनिया की सभी नदियों के किनारे
पृथ्वी महसूस कर रही है आसमान का स्पर्श
नीले अँधेरे के कुरछुल में रात ला रही है सितारे की आग