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शायद मैं / नाज़िम हिक़मत / उज्ज्वल भट्टाचार्य
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शायद मैं
उस दिन से काफ़ी पहले,
गालाटा ब्रिज पर डोलते हुए
अपना साया सुबह-सुबह सड़क पर फेंकूँगा ।
शायद मैं
उस दिन के
काफ़ी बाद,
अपनी ठुड्डी पर सफेद दाढ़ी की थोड़ी सी झलक के साथ
अभी ज़िन्दा रहूँगा ।
और मैं
उस दिन के काफ़ी बाद,
अगर सेहत बनी रहे,
शहर के चौक पर
दीवार पर टेक लगाए
आखिरी जँग के बाद उनके लिए,
जो मेरी तरह ज़िन्दा होंगे, उन बुजुर्गों के लिए,
त्योहार की शाम को
बेला बजाऊँगा ।
चारों ओर रात की मस्ती होगी
फुटपाथ पर सुनाई देंगे
नए इनसानों के क़दम
जो नए गीत गाएँगे ।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : उज्ज्वल भट्टाचार्य