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शायरी सब धरी रह गई / अशोक अंजुम
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शायरी सब धरी रह गई!
मंच पर मसखरी रह गई।
सबने टाँके भिड़ाये यहाँ,
हट अरी बाबरी, रह गई!
खूब रँग लायीं लफ्फ़ाज़ियाँ,
बात मेरी ख़री, रह गई!
फुस्स सारी जुगाड़ें हुईं
इसलिए नौकरी रह गई!
‘एैड’ टी.वी. पे दे ना सके,
अपनी कारीगरी रह गई!
तुम जनाजा ज़रा रोकना,
शर्ट पर इस्तरी रह गई!