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शाहराह / फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
Kavita Kosh से
एक अफ़सुरदा शाहराह है दराज़
दूर उफ़क पर नज़र जमाये हुए
सर्द मिट्टी के अपने सीने के
सुरमगी हुस्न को बिछाये हुए
जिस तरह कोई ग़मज़दा औरत
अपने वीरांकदे में महवे-ख्याल
वसले-महबूब के तसव्वुर में
मू-ब-मू चूर, अज़ो-अज़ो निढाल