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शिखर पर मिलूँगी मैं तुम्हें / सांत्वना श्रीकांत
Kavita Kosh से
विमुख तुम्हारे मोह से,
प्रतिध्वनियों से तिरस्कृत नहीं,
तुमको अविलंब
समग्र समर्पण के लिए।
मुक्त-बंधन
इन शब्दों से परे,
बुद्ध की मोक्ष प्राप्ति
और
यशोधरा की विरह- वेदना के
शीर्ष पर स्थापित होगा शिखर।
पहले चरण में...
समर्पित करती हूँ अपनी देह,
जिसे तुम नहीं समझते
पुरुष होने के अहंकार में।
दूसरे चरण में...
समर्पित करती हूं
अपना अहम्,
जो तुम्हें स्वीकार्य नहीं।
तीसरे चरण में...
समर्पित करती हूँ
अपना चरित्र।
स्त्री चरित्र तुच्छता का रूपक है,
पूर्वजों ने कहा तुमसे।
मैंने तो मुक्त किया है
स्वयं को...
उसी ‘मुक्तिबोध’ के साथ,
मिलूंगी मैं तुम्हें शिखर पर,
जब तुम तीनों पुरुषार्थ
जी चुके होगे।
अंतिम पुरुषार्थ के आरंभ में
मिलूंगी मैं
तुम्हें शिखर पर!