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शिशिर हवा संग ऐलै उड़लोॅ / अनिल कुमार झा
Kavita Kosh से
शिशिर हवा संग ऐलै उड़लोॅ
देखोॅ आबी केॅ धमकाबै,
कान-आँख सब बंद करी केॅ
जखनी देखौं नज़र फेरी केॅ
लागै दाँतोॅ पर दाँत धरी कॅे
सुइया सौंसे गड़ै डरी केॅ
भरम भूल सें ई चमकावै
शिशिर हवा संग ऐलै उड़लोॅ,
देखोॅ आबी कॅे धमकावै।
सीत सीत मय घास दूब छै
पत्ता पत्ता ते ऊब डूब छै,
लहर लहर से लहरी उठलै
आतंकित भी मोॅन ख़ूब छै,
जखनी तखनी सिहरी उठलै
केन्होॅ न केन्होॅ ई बहकावै,
शिशिर हवा संग ऐलै उड़लोॅ
देखोॅ आबी के धमकावै।
कोॅन फूल छै, कोॅन कली छै
सगठे सूनोॅ सड़क गली छै,
रात-रात भर दिन भी छोटोॅ
जाड़ जाड़ ई महाबली छै
आग आग सें ख़ुद शरमाबै
शिशिर हवा संग ऐलै उड़लोॅ
देखोॅ आबी के धमकाबै