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शिशुओं के लिए पाँच कविताएँ-2 / बालकवि बैरागी
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1.
सोचो-समझो और विचारो,
पेड़ों को पत्थर मत मारो ।
समझाता हमको विज्ञान,
उनमें भी होती है जान ।।
2.
सबसे हँसकर मीठा बोलो,
हमें बड़ों ने यही सिखाया ।
यही अगर हम सीख सके तो,
समझो जीवन सफल बनाया ।।
3.
चाट रही गैया बछड़े को,
पिला रही है अपना दूध ।
कूद रहा मस्ती से बछड़ा,
लम्बी, ऊँची, नीची कूद ।।
4.
फ़ोन की घंटी ज्यों ही बजती,
दीदी कहती- चलो ! चलो !
(पर) कुछ भी नहीं सुनाई पड़ता,
करते रहिए हलो ! हलो !
5.
नानी मेरी प्यारी नानी,
बातें करती बड़ी सयानी ।
मुझे कहानी रोज़ सुनाती,
मम्मी तक को डाँट पिलाती ।।