शुद्ध हृदय से प्यार / बाबा बैद्यनाथ झा
मात्र स्वार्थ से प्रेरित होकर,
करे प्रेम संसार।
माँ ही करती निज संतति से,
शुद्ध हृदय से प्यार॥
नौ माहों तक रखे उदर में,
रखती प्रति पल ध्यान।
पुनः जन्म दे दूध पिलाती,
जो है सुधा समान।
मल-मूत्रों को धोती रहती,
सहकर भारी कष्ट।
निज जीवन को कर देती वह,
पर सेवा में नष्ट।
माँ ही होती है बच्चे के,
जीवन का आधार।
माँ ही करती निज संतति से,
शुद्ध हृदय से प्यार॥
पढ़ा लिखा कर योग्य बनाती,
देती समुचित ज्ञान।
अनुशासन का पाठ सिखाकर,
करती कार्य महान।
जीवन में आगे बढ़ने का,
दिखलाती है राह।
अपना लक्ष्य प्राप्त करने तक,
करती माँ निर्वाह।
दिलवा देती सन्तति को वह,
सहज सभी अधिकार।
माँ ही करती निज संतति से,
शुद्ध हृदय से प्यार॥
जब कृतघ्न बेटे से मिलता,
माँ को अति संताप।
सह लेती वह सब दुःखों को,
कभी न देती श्राप।
अपना वह प्रारब्ध समझकर,
धारण करती मौन।
त्यागमयी माता जैसी है,
इस धरती पर कौन?
ब्याज सहित सबके मस्तक पर,
माँ का है ऋण-भार।
माँ ही करती निज संतति से,
शुद्ध हृदय से प्यार॥