भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
शुभा और मनमोहन के लिए / कांतिमोहन 'सोज़'
Kavita Kosh से
(शुभा और मनमोहन के लिए)
अब उसकी बज़्म में कौन आएगा ख़ुदा जाने।
सुना है शम्आ से बदज़न हुए हैं परवाने॥
जो रोज़ लड़ते थे मुझसे शराब की ख़ातिर
वो घेरकर मुझे ले जा रहे हैं पिलवाने।
नई सदी में नए हादिसे तो होने हैं
सुना है होश की पीने लगे हैं दीवाने।
नया समाँ है नया दौर है नई दुनिया
पुराने रोग का क्या हश्र हो ख़ुदा जाने।
मेरी कमी है मेरी ही कमी है सौ फ़ीसद
बहुत अज़ीज़ भी होते गए हैं बेगाने।
ग़ज़ल का फिर से सितारा बुलन्द होना है
ख़ुदा करे रहें सालिम ग़ज़ल के दीवाने।
उसी के नाम पे सजती थी सोज़ की महफ़िल
उसी के नाम पे छलका करेंगे पैमाने॥
2002-2017