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शृंगार / शीतल प्रसाद शर्मा
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भरे हउला बोहे, पानी चुचवावत हे।
गोरी के देह वोखर उम्र ल बतावत हे।
लम्बा चुंदि के छोकरी, आंखी घुमावत जाय
देखे तौनो पछताय, नई देखय तौन पछताय
सोलहसाल म सुरा घलो सुंदर दीखथे
मया के नइय परिभाषा, सब अपने अपन सीखथे
चेहरा माहे चन्दा, आंखी हे कमल फूल।
कनिहा म हे नंदिया, रेंगना झूलना के झूल।