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शेखचिल्ली / सुरेश सलिल
Kavita Kosh से
फूलों से लदी दिल्ली
को देख शेखचिल्ली
ये सोच रहे मन में
कि घर में बहार आई
खोए हुए सपनों में
भँवरे की तरह भटके
जब शाम हुई, आख़िर में
घर की याद आई
घर वापसी में, बस में
धक्के तो बहुत खाए
पर मन में कहीं गहरे
बजती रही शहनाई
घर सामने जब आया
दहलीज पे' जब पहुँचे
बीवी के सर पे खस्ता
पल्लू पड़ा दिखाई