भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

शेर-10 / असर लखनवी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

(1)
ताइरे-जाँ!1 कितने ही गुलशन तेरे मुश्ताक2 है,
बाजुओं में ताकते - परवाज3 होना चाहिए।
 
(2)
तुझको है फिक्रे-तनआसानी4 'असर',
जिन्दगी कुर्बानियों का नाम है।
 
(3)
तुम्हारा हुस्न आराइश5, तुम्हारी सादगी जेवर,
तुम्हें कोई जरूरत ही नहीं बनने-संवरने की।
 
(4)
तूफाँ से खेलना अगर इन्सान सीख ले,
मौजों से आप उभरें, किनारे नये- नये।

(5)
तेरी अदायें दिल को लुभायें तो क्या करें,
आंखें न मानें देख ही जायें तो क्या करें।

1. ताइरे-जाँ- हे प्राण-पंछी, हे जीव रूपी पंछी 2. मुश्ताक - ख्वाहिशमंद, लालायित, इच्छुक 3. ताकते-परवाज - उड़ने की ताकत 4.तनआसानी - आरामतलबी, शारीरिक सुख 5. आराइश - सिंगार, सजावट, आभूषण