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शोर मचाती रहती हो / सुरजीत मान जलईया सिंह
Kavita Kosh से
याद तुम्हारी अक्सर
आती जाती है
पलकों पर धुन्धक सी
खुद छा जाती है
शोर मचाती रहती हो
मेरे मन में
अंगडाई सी क्यूँ लेती हो
इस तन में
पागल करके ही क्या
अब छोडोगी तुम
महक तुम्हारी मेरे तन
से आती है
याद तुम्हारी अक्सर
आती जाती है
पलकों पर धुन्धक सी
खुद छा जाती है
घर में अब भी मेरा
कमरा खाली है
जहाँ तुम्हारी करता दिल
रखवाली है
कागज की किरचों पर
फैली रहती हो
मेरे गीतों पर धुन तेरी
आती है
याद तुम्हारी अक्सर
आती जाती है
पलकों पर धुन्धक सी
खुद छा जाती है
जिन रस्तों पर आती थीं
तुम छुप छुप कर
एक मिलन की अभिलाषा
थी रुक रुक कर
खेतों की पगडण्डी पर
अब भी तेरे
पद चिन्हों की छाप
नजर आ जाती है
याद तुम्हारी अक्सर
आती जाती है
पलकों पर धुन्धक सी
खुद छा जाती है