भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
श्याम सलोना / सुनीता शानू
Kavita Kosh से
सुन सखी ओ चँचल नैना,
जागी न सोई मै सारी रैना,
रात सुहानी फिर वो आई,
आँखों में भी मस्ती छाई
डाल गले बाहों का गहना,
हुए एक नैनो से नैना,
सुन सखी ओ चँचल नैना
जागी न सोई मै सारी रैना...
रूप मनोहर श्याम सुन्दर वो
झुका जो धरती पे अम्बर हो
बाजे पायल खनके कंगना
चमकी बिजुरिया सारी रैना,
सुन सखी ओ चँचल नैना-
जागी न सोई मै सारी रैना...
मौन निमन्त्रण मेरा समर्पण
सुख निद्रा सा प्रखरालिंगन
समा गई उर बीच लता सी
पलक सम्पुटों में मदिरा सी
हुई समर्पित प्रेम सुवर्णा।
सुन सखी ओ चँचल नैना
जागी न सोई मै सारी रैना॥