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षटपदी / विद्यापति

बहुले भाँति वणिजार हाट हिण्डए जवे आवथि।
खने एके सवे विक्कणथि सवे किछु किनइते पावथि।
सव दिसँ पसरू पसार रूप जोवण गुणे आगरि।
बानिनि वीथी माँडि वइस सए सहसहि नाअरि।
सम्भाषण किथु वेआजइ तासओ कहिनी सब्ब कह।
विक्कणइ वेसाइह अप्प सुखे डीठि कुतूहल लाभ रह।