भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
षड़यंत्र के खिलाफ / भास्कर चौधुरी
Kavita Kosh से
सीरिया में
उड़ा दिये गये
छत स्कूलों के
उड़ गए
खिड़कियों- दरवाजों के परखच्चे
पत्तों के माफिक
पेशावर में
गोलियों से भून दिया गया
अपनी-अपनी कक्षाओं में
पढ़ रहे बच्चों को
ज़िंदा जला दिया गया
स्कूल की प्राचार्या को
जो चाहती तो
भाग कर बचा सकती थी
फ़कत अपनी जान
इधर बस्तर के घने जंगलों में
आम है
स्कूलों को बंद करने का षड़यंत्र
पर
जैसे ही गुजरते हैं
कुछ गरम दिन
गुजरती हैं जैसे ही
चंद ठंडी काली रातें
शांत हो जाते हैं जैसे ही
बारूद रेत और धूल के बवंडर
जाने कहाँ से अचानक
उड़ आए बादलों की तरह
दौड़ पड़ते हैं बच्चे
पीठ पर बस्ता टिकाए
स्कूलों की ओर...