भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
संगमरमर का सबेरा और हम / केदारनाथ अग्रवाल
Kavita Kosh से
संगमरमर का सवेरा !
और
- उसकी मूर्तियाँ हम--
मूक, कातर !
आह ! हमको
शस्यश्यामा छुए,
चूमें और भेंटे !!