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संझकी किरिनियाँ / गौतम-तिरिया / मुचकुन्द शर्मा

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लाल-लाल सांझ के उतरल किरिनियाँ
नद्दी पोखर लाल लगल लाल सगर दुनिया
नइकी दुलहिनियाँ ई घूँघट हे काढ़ने
उतर रहल पच्छिम में धूप-धाप बाढ़ने
सगर छितराल नय फुनगी पर बैठल हे
कतनो बोलाबो नै आवे ई एंेठल हे
सुबहे मांग भरल साँझ में पसरे हे
दिनभर चलल अब सांझ को असरे हे
मुलमुहर ओड़हुल ओहार से उतरे हे
सेनुर कियौरी अपना मांग पर छितरे हे
लागल जैसे दौड़ चलल ललकी हिरिनियाँ
लाल-लाल साँझ के उतरल किरिनियाँ
साँझ होल मछुआरा समेटे हे अप्पन जाल
गाय अप्पन बच्चा ले हुंकरल आवे रंभाल
सुतो लगल साँझ पडै़त ठोर मठोर आल बाल
लाल-लाल रंगल धुलल लाल बनल सभे ताल
घटा लाल, जटा लाल लाले हे तनल पाल
माँग लाल गांग लाल लाले हे साँझ गाल
साँझ के भाल पर गोल सुरूज बिनियाँ
लाल-लाल साँझ के उतरल किरिनियाँ
चिरई चुरमुन्नी सब बनल एकर पायल
कहे कोय लगल जैसे सुरूज होल घायल
दुलहा ले विछवे हे ललकी चदरिया
छलक रहल रूप के सोना गगरिया
जानल सुनल हे एकर नभ के डगरिया
रंगल एक रूप में दुलहा पगड़िया
पहुँचल हे दूर से साँझ घर भरिया
बेच रहल पच्छिम में सेनुर सेनुरिया।
ललकी ओहार में छिपल दुलहिनियाँ
लाल-लाल साँझ के उतरल किरिनियाँ
चले झमाझम्म गमागम करे राह तब
दिखे चमाचम छमाछम्म करे बाह सब
पवन हिलावे हे धीरे-धीरे अंचरा
एकरा तरेंगन के मिलत अब गजरा
मुँह नै उठावे ई बड़ लजकोंट हे
पूरे अनुरागल हे दुलहा से भेंट हे
मीठ लगल ऐसन ई जैसन मीठ चिनियाँ
लाल-लाल साँझ के उतरल किरिनियाँ।