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संवत्सर का गीत / राम सेंगर
Kavita Kosh से
संवत्सर बदला है
कुबड़े घोड़ी चढ़कर आए ।
अपनी-अपनी ऐबी लदघुड़ियों पर चढ़कर
भोंपा में जाने क्या बोल रहे बड़र-बड़र
ख़ासा कोहराम हैं मचाए ।
छुटकी-मझली-बड़की, गोबर-धनिया-होरी
भौंचक सा गाँव हुआ, औचक छोरा-छोरी
खूँटों पर ढोर बिदुरकाए ।
बड़े-बड़े परचे औ' पट्टे ले घूम रहे
झुक-झुक कर चौखट-दर-चौखट को चूम रहे
बत्तीसी पूरी चमकाए ।
भद्रलोक से धर-धर रूप नए आए हैं
जनहित में बाँट रहे, रेवड़ियाँ लाए हैं
बस्ती के भाग खुले हाए !
वोट के लिए, नंगी-लुच्ची सब चालें हैं
ठण्डी सब क्रान्तिमुखी शब्द की मशालें हैं
लाभ इसी का भडुए पाए ।
संवत्सर बदला है
कुबड़े घोड़ी चढ़कर आए ।