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संवाद-शिखर / प्रवीण कुमार अंशुमान
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संवाद-शिखर पर
होकर विन्यस्त,
कभी न होता हो
जिसका सूरज अस्त;
जो हर रोज़ नए
अभियान पे रहता,
राष्ट्रहित की बातें जो
सदा-सदा ही कहता;
जिसकी प्रत्यंचा पर
हर पल होकर सवार,
शब्द प्रकट करते हैं
प्रतिक्षण ही जिसका आभार;
रण में जिसकी
देखो, हुँकार मची है,
तर्कों में जिसने
सदा ही सच्ची बात रची है;
हम सबके बीच में आकर
बता गए जो सहर्ष ही आज,
शब्दों की माला में गूँथकर
निज हर्षित होने का राज;
उस मनोयोग के स्वामी को
करता हूँ मैं हर पल प्रणाम,
जिनके शब्दों में आविष्ट होकर
आज सजी हम सबकी शाम ।