भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

संसद में कवि सम्मेलन / स्वप्निल श्रीवास्तव

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक दिन संसद में कवि सम्मेलन हुआ
सबसे पहले प्रधानमंत्री ने कविता पढ़ी
विपक्षी नेता ने उसका जवाब कविता में दिया
बाकी लोगों ने तालियां बजायीं
कुछ लोग हंसे कुछ लोगों को हंसना नहीं आया
आलोचकों को अपनी प्रतिभा प्रकट
करने का सुनहला अवसर मिला
टी.वी. कैमरों की आंखें चमकीं
एंकर निहाल हो गये
खूब बढ़ी टीआरपी
टी.वी. चैनलों पर हत्या और भ्रष्टाचार से
ज्यादा मार्मिक खबर मिली
इस लाफ्टरशो को विदूषक देखकर प्रसन्न हुए
एक विदूषक ने कैमरे के सामने ही तुकबंदी शुरू कर दी
आधा पेट खाये और सोये हुए लोग हैरान थे
यह संसद है या हंसीघर
हमारी हालत पर रोने के बजाय हंसती है