भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

संस्कार / हरिओम राजोरिया

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


खाना खाते वक्त
गिर पड़ता है मुँह का कौर
पता नहीं कौन भूखा है ?
अपनी संस्कारजन्य पीड़ा
परेशान करती है

अभावों को रौंदता हुआ
घाटी तो चढ़ आया
पर बार-बार देखता हूँ पीछे
बार-बार होता हूँ उदास।