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सखरा लागै सैण / मानसिंह राठौड़
Kavita Kosh से
अंतस राखै ऊजळो,बोलै मीठा वैण ।
आये नों आदर घणो,सखरा लागै सैण ।।
धरा उतर में धूंधळो,खमके आभै खैंण ।
इण अवसरिये आवजो,सखरा लागै सैण ।।
मेहमा करां मोकळी,नेह बरसाय नैण ।
पल-पल प्रीत परोसतां,सखरा लागै सैण ।।
एकर आवो आंगणे,रहिजो हेकज रैण ।
बखत बातां म बीतसी,सखरा लागै सैण ।।
घूमां दिल्ली आगरो,अर घूमां उज्जेण ।
बाढाणौ व्हालौ घणौ,सखरा लागै सैण ।।
करनल माँ किरपा करै,दुरगा मेटै दैण ।
आवड़ राखै आबरू,सखरा लागै सैण ।।
अवसर आयां आवजो,नित-नित तरसे नैण ।
थां आयां उसरँग थपै,सखरा लागै सैण ।।