भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सखा तुमने कहा था / दीपा मिश्रा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक बार अगर तुम
कुछ छोड़ जाते
दोबारा मुड़कर नहीं देखते
पर जरा बताओ
वह बाबरी राधा
नहीं याद आती तुम्हें
मैया यशोदा नंद बाबा
नहीं रुलाते तुम्हें
वह काली रैना
गोपियों संग रास
पेड़ कदंब के
नहीं बुलाते तुम्हें
बुलाते होंगे जरूर
भले तुम कुछ भी कहो
पहचानती हूं तुमको
अपने अंदर अथाह पलों को संजोया है तुमने
रोए भी हो चुपके से
मौन हो किंतु कान्हा
बनावट हर जगह
अच्छी नहीं लगती
रोया करो हंसा करो
यादों को बताया करो
बाँटनेे से ही ताने बुनते हैं
इन्हीं तानों से तो हम
पुरानी यादों से जुड़ते हैं