सखी सावन ऐलै / जटाधर दुबे
सुनोॅ, सुनोॅ, सखी सावन ऐलै
पानी से भींजलो गाँमोॅ रो
गोरी जैसने
अंग-अंग धरती रो दमकै,
नया-नया पत्ता रो
कपड़ा-लत्ता पिन्ही,
गाछ, लŸार, सब पादप चहके
पोखर, कुईयाँ, अहरा भरलै,
सुनोॅ, सुनोॅ, सखी सावन ऐलै।
छाय गेलै धरती रो रग-रग
हरियाली से,
इठलावै प्रकृति सुकुमारी,
कोमल हवा हृदय के
भरलै प्रेम-भाव से,
भाव सकल होलै सुखकारी।
गरमी से झुलसलोॅ, प्यासलोॅ
छेलै धरती,
मोॅन अघालै, मुस्की मारै।
चमकै चेहरा हर किसान रो,
खेत नै परती,
भरि भरि आशा फ़सल निहारै।
शिव शक्ति रो भक्ति भाव में
रमलै दुनिया,
बम-बम-बम स्वर लहरी गूंजै
वृन्दावन में नाचै गोपी,
श्याम, सखी राधा संग नाचै
नन्दन वन में झूला झूलै।
इन्द्रधनुष सतरंगी सजलै,
सुनोॅ, सुनोॅ, सखी सावन ऐलै।
भंवरा सुमन कली रो पास
चललै खींचलोॅ, मुग्ध सुवास,
शान्त सरसि रो तन पर फूल
बिछलो सुन्दर कमल-दुकूल।
पुरुष गाछ सें लत्तर लिपटै
पिया-भाव प्रकृति में प्रकटै,
उमड़ी घुमड़ी बादल के देखी
नाचौ मोर, पंख सतरंगी,
झरना रो स्वर में रस भरलै
कलकल छलछल गीत उचरलै।
उठि उमंग सरि लहरी धावै
जेनां बादल पास बोलावै,
राखी बंधानी परब सुहैलै
सुनोॅ सुनोॅ सखी सावन ऐलै।