भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सच / बाल गंगाधर 'बागी'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आंसुओं का प्याला, वो कभी नहीं पीता है
जलजला जरा सा, जिसके भी अंदर होता है
चाँद होकर, जो सितारों के साथ चले
वही सारे जमाने, का जिगर होता है
लोगों में बसने वाला, जुदा भी कैसे होता है
पैदल हैं लोग चलते, वो कंधों पे विदा होता है
नहीं पास जिनके, दो वक्त की रोटी
रिक्शा चलाकर वही, वही मालदारों को ढोता है
जो बेटा छोड़ बेटी को, जिंदा हैं गाड़ देते
वही शख्स जाके, अनाथालाय में रोता है