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सजी मन में भावों की बारात / आशुतोष द्विवेदी
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सजी मन में भावों की बारात इक दिन,
तो फिर झूमते मन से की बात मैंने
था बरसात से मेरा परिचय बहुत कम,
मगर मेरी सूखे से यारी बड़ी थी
मेरी सोच से बिजलियों का चमकना
महज काले मेघों की धोखा-धड़ी थी
मैं हरियाली की बात करता भी कैसे,
मेरी भावना-भूमि बंजर पड़ी थी
हुई झूम सावन की बरसात इक दिन
तभी मस्त सावन से की बात मैंने
विचारों की धारा तरंगित हुई और
मेरे भाव मन में मचलने लगे तब,
मिटा बेकली का वो झूठा अँधेरा,
मेरे गीत दीपक से जलने लगे तब,
सजी मुस्कुराहट जो अधरों पे मेरे
औ’ नयनों से आँसू निकालने लगे तब
लिए साथ साँसों की सौगात इक दिन,
मेरे सूने जीवन से की बात मैंने