भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सड़क / हरीश भादानी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जाने कब से सड़क अकेली
दस्तक पांव नहीं देते हैं
लोरी नहीं सुनाती आहट
उमर अनींदी
दूर-दूर आंखें पसराती
जाने कब से सड़क अकेली
सूरज अंगुली नहीं थामता
रूनझुन नहीं बजाता बादल
उमर अछांही
हिलका-हिलका कर बिसूरती
जाने कब से सड़क अकेली
छाती तोड़ गया है गुमसुम
हवा उढ़ाये क़फन रेत का
उमर अगूंजी
डूबा-डूबा शोर सांसती
जाने कब से सड़क अकेली
संध्या गर्म राख रख जाती
रात शरीर झुलस जाती है
उमर दाग़िनी
क्षण-क्षण दुखता अकथ पिरोती
जाने कब से सड़क अकेली
ठूंठ किनारे के बड़ पीपल
गूंगे मील-मील के पत्थर
उमर अनसुनी
चौराहों मर-मर जी लेती
जाने कब से सड़क अकेली