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सड़क पर तारकोल / अश्वघोष

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सड़क पर बिछा है तारकोल
पैरों ने कर दिया है इंकार
                  यात्रा से

सिर्फ़ आँखें हैं
जो तैर रही हैं मछली की तरह
तारकोल के शरीर पर

मन है कि
भर रहा है कुलाँचें
               अन्दर ही अन्दर
हिरन की भाँति
पैरों से कर रहा है अनवरत ज़िद
समझ रहा है यात्रा की
                मज़बूरियाँ
तन कभी हुलस रहा है
कभी झुलस रहा है
और यात्रा...
जोड़ते-जोड़ते समीकरण
धीरे-धीरे
ख़ुद को भूल रही है,
आशा और निराशा की
                  डाल पर
चिड़िया की तरह झूल रही है