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सड़क बीच चलने वालों से / हरीश भादानी

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सड़क बीच चलने वालों से
    क्या पूछूँ.....क्या पूछूँ ?


    किस तरह उठा करती है
    सुबह चिमनियों से
    ड्योढ़ी-ड्योढ़ी
    किस तरह दस्तकें देते हैं
    सायरन.....सीटियां.....क्या पूछूँ ?
सड़क बीच चलनेवालों से
    क्या पूछूँ.....क्या पूछूँ ?


    कब कोलतार को
    आँच लगी ?
    किस-किसने जी
    किस-किस तरह सियाही ?
    पाँवों की तस्वीर बनी
    कितनी दूरी के
    बड़े कैनवास पर.....क्या पूछूँ ?
सड़क बीच चलने वालों से
    क्या पूछूँ.....क्या पूछूँ ?


    कैसे गुजरे हैं दिन
    टीनशेड की दुनिया के ?
    किस तरह भागती भीड़
    हाँफती फाटक से ?
    किस तरह जला चूल्हा ?
    क्या खाया-पिया ?
    किस तरह उतारी रात
    घास-फूस की छत पर.....क्या पूछूँ ?
    सड़क बीच चलने वालों से
    क्या पूछूँ.....क्या पूछूँ ?


पूछूँ उनसे
चलते-चलते जो
ठहर गए दोराहों पर


    पूछूँ उनसे
    किस लिए चले वे
    बीच छोड़, फुटपाथों पर
उस-उस दूरी के
आस-पास ही
अगुवाने को
खड़े हुए थे गलियारे


    उनकी वामनिया मनुहारों पर
    किस तरह
    कतारें टूट गई.....क्या पूछूँ


सड़क बीच चलने वालों से
    क्या पूछूँ.....क्या पूछूँ ?