भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सतएँ अठएँ मों घर आवै / भारतेंदु हरिश्चंद्र
Kavita Kosh से
सतएँ अठएँ मों घर आवै ।
तरह तरह की बात सुनाव ।
घर बैठा ही जोड़ै तार ।
क्यों सखि सज्जन नहिं अखबार ।