सतमी किरण / सवर्णा / तेजनारायण कुशवाहा
के उतरलै घोघो लेने ई चढ़तें आखर में
ताल-तलैया बैहारोॅ में पत्थर-पहार में।
धन घेरै आकाश छने
दिने-दुपरिया-सांझ बने
पछिमे पनसोखा सरकै सरगोॅ के आरोपार में।
तड़-तड़-तड़ बिजली तड़कै
धड़-धड़ बानर जी धड़कै
गाछ-बिरिछ के पत्ता हर-हर गाबै द्वार मलार में।
सन-सन पुरबैया लहरै
झन-झन झिंगुर सोर करै
नाचै मोर पपीहा पी-पी पिहकै नदिया-पार में।
पानी-पानी सँ गोठोॅ
भेलै एक खेत सबठो
छप-छप, कल-कल, खल-खल निकलै बस एके सुरधार में
रस-भिंगली बसती-बसती
टीकर टांड-उसर-परती
धरती हुलसै धान-उड़द के अंखुआ ले उपहार में।
गोछी गाड़ै हे सिरौतिन आरी-आरी
धान रोपै हे कठौतिन धारी-धारी।
आगू-आगू गोछी गाड़ै रानी सिरौतिनियां
पाही पीछू गाथै आरोॅ धानी कठौतिनियां
बीचे रोपनियां हे बारी-बारी
उमड़ि-घुमड़ि मेघा जल बरसावै
सगठें रोपनियां के गीत लहरावै
रीझै बटोहिया सुनि के गारी
खेतवो-किसनमो के आस गदरैलै
बने-बने घास-पात चास हरियैलै
सौंधियैलै माटी बारी-कुवांरी।
ठनकै ठनकवा वो चमकै बिजुरिया
बदरा सलोना संगे सौनी कजरिया
खेलै सामरो मने पारी-पारी।
रुनझुन-झुन पायल झमकै
हर रोज सौर-अंगना में
आ मनोभावना ठुनकै
संज्ञा-छाया-कंगना में
यम-यमुना-शनि-मनु-तपनी
दूनों अश्विन् के पाबी
ऊ सौंसे सौर जगत में
उत्सव गेलै तब छाबी।
अपना बाबू सूरज के
वै सभे बात मानै छै
पूरै सब काम मिली के
सद्प्रेम भाव जानै छै।
संज्ञा-छाया में, छाया
संज्ञा में भाव भरै छै
वै सभे दिशा सँ सब रंग
पति के सहयोग करै छै।
डलिया भरलोॅ सूप लानै
लानै साँझ-विहान
घी-दूध-सेनुर मंगाबै
नेमो-नरियर - पान।
अछत-चन्दन - धूप भावै
आरोॅ पुआ - पकवान
रचिये-रचिये सूप साजै
साजै सभेटा समान
डूबतें-उगतें हे सुरूज
सजलोॅ सूप ठो चढ़ाय
मिलिये अरघ दान करै
माटी दियरी देखाय।
घर के दोन्हू रानी सिनि
मिलि मधुर सोम लावै छै
वैं बड़ा प्रेम सँ अपनोॅ
मुँह में धीरैं दाबै छै।
हौ घड़ी लोक के भूली
रनियां आनन्द मनावै
भै के विभोर तन-मन सें
नाचै तत् थै तत् गावै
दोन्हू मिलि सूता काटै
तकली के धुन में गावै
आ रंग-बिरंग सभेलें
रचि-रचि परिधान बनावै
सूरज घुड़ दौड़ मचाबै
रथ के किरनियो नचावै
भू के पौधा-पौधा में
संजीवन-रस ढरकावै।
अति मर्यादा के भीतर
सब टा धंधा होवै छ
सच सरिस धर्म-सीमा में
आचार नियम ढोबै छै।
यहाँ अंग-कवि कहै सौर परिवार
कथा अरूप-सरूप, धर्म-व्यापार।
कृतांत मरणशील में प्रथम होतै
दोसरा के ले लें यम राता खोलतै
हौ लोक जहां यम रहतै
सब दिन यमलोक कहैतै
कत्ते नी धावन हातै
प्रानी के जौने लैतै।
यमराज नाम के सुनथें
जग के सब लोगें डरतै
यमपुरी न जइयों यै लें
सब धर्म-कर्म बैं करतै।
दू टा लोक-पहिलोॅ कहावै स्वर्ग-लोक
ज्ञानी जन दोसरा के कहै यमलोक।
धर्म-कर्म करै वाला स्वर्ग लोक पावै
पाप करै वाला यम लोगक जाबै।
मानै अनुशासन जे स्वर्ग में सिधारै
तोड़ै अनुशासन यमपुरी पधारै।
जप-तप, नेम-ब्रत स्वर्ग में ले जावै
आचार-विरोधी के यम भैया सतावै।
यमदूत दौड़ी-दौड़ी मृत्यु लोक जैतै
जेकरोॅ आयु पूरतै पकड़ी लै ऐतै
कर्म अनुसार यम दण्ड दिलबैतै
धरती के प्रानियों में भय उपजैतै।
यमदूत होतै असफल जहां कहीं
भैंसा असवारी यम पहुंचतै वहीं।
लानिये करतै यम कारागार बन्द
आरोॅ ओकरा के देतै वैं कठोर दण्ड।
यमराज बैठी मरजादा-सिंहासन
आपनोॅ सूझ-बूझ सँ करतै शासन
यम मन निग्रह सरूप योगी देहे
बसतै नीत सीधे सरंग जैतै सेहे।
यजमानें यम के सोम दाबी पिलैतै
संगीत-वीणा के सुर घीव सँ रिझैतै
ढेरे दिना जीयै ले यम के गीत गैतै
यज्ञ के समय कुश आसन बिछैतै।
वैवस्वत के बैठे ले मंत्र सें बुलैतै
यम पितरोॅ के संगे खुश होलें ऐतै।
भाय जैतै बहिन के गांव एक दिन
आदर करतै वहां यमुना बहिन
भैया के माथें यमुना चन्दन चढ़ैतै
अक्षत-दही-मधु-घी, दियरा जलैतै।
फल के थारी में साजी आरती दिखैतै
मिठाय खिलाय यमुना पान खिलैतै
यहे रंग यम करी यमी के अशोक
हर साल खुशी सें लौटतै निज लोक।
ई यमी सनेह-सलिल सें
रोजे अग-जग के पाटै
भावना अनेक निरन्तर
सब के मानस में बांटै।
सगरे द्यावा-पृथिवी में
मादक सौरभ के छींटें
जी-जी के उदासी मेटी
मन के डठल के सींचै।
सब लोगें यम के भैया।
ई यमी बहिन कहलैतै
अति सनेह दुलार बहिन सें
आ बहिन भाय सें पैतै।
जग के सब त्रास मिटैतै
दुनियां मतिमान बनैतै
सब टा दुख दैन्य हरी के
हरदम गतिमान कहैतै।
लागै की सौंरी-सौंरी
असमानी अंगना नाखी
बरसाती बदरी ऐसनोॅ
बन सुघड़ पतौखी पाखी।
धरियार-सोंस-बीचा के
मछरी-लाकड़-मृग सांभर
पोसतेै चील मैना के
शुक मोर-पपीहा बानर।
यमुना-छबि के दर्शन सें
संसार पाप सें छुटतै
माया-ममता-मोहो के
हर लौकिक बन्धन टूटतै।
सांवरी-सरौनी धरती
गेहूं-जौ-धान उगैतै
अपनोॅ चंचल लहरोॅ पर
चाननि संग चान सुतैतै।
ई लोक नदी यमुना बनि
जग बीच प्रतिष्ठा पैतै
शीतलता-पवित्रता पर
जड़ जगम माथ नवैतै।
भेतै समान उपकारी
हरतै तमाम दुख भारी
गौरव-गरिमा-महिमा के
गैतै सकले नर-नारी।
ई यमी पियसलोॅ के जल
भुखलोॅ के दाना देतै
यें बाट-बटोही सबके
सब दिना थकौनी लेतै।
संकल्प-दृष्टि जनप्रियता
धुति-कांति-शांति-मति देतै
सुख-सम्पत्ति-स्वास्थ्य-सुमेधा
सुन्दर सरूप, यश देतै।
मनुष्य में मनु के असथान छै पहिलोॅ
पहिलोॅ शासक होतै मनुबे ऐ लेलोॅ
संसार में यें चलैतै यज्ञ-परम्परा
हवि देतै आगिन जराय सुनहरा।
मनुष्य-लोक के मनु होतै विधायक
लोक-धर्म संस्कार आदि नियामक
मनुष्य में मनु के समान एक ऐतै
प्रलय-बाढ़ सें जब मछरी बचैतै।
नारी एक कलह सें मनु के बचैतै
अन्तर के क्षोभ-असंतोष के मिटैतै
चिन्तित निराश मनु में आस बँधैतै
काम चोर मनु-मने कर्म उपजैतै।
मनु में आशा उगतै सुन्दर सुघर।
लौकतै प्रसन्न जड़-चेतन सगर।
छाया पूत गति शील मन के भाषा में
राग-द्वेष, सुख-दुख, आशा-निराशा में
विश्वासमयी नारी के होलें सें संयोग
मनु के मिलतै बढ़िया आनंद-भोग।
शनिदेव बनतै शनि लोक के सामौ
दुष्ट केरोॅ शासक होतै नामी-गिरामी
अत्याचारी केरोॅ शनि करतै संहार
शनि ग्रह नामे सुनि डरतै संसार
मने पारि शनि के कांपतै सुरलोक
छाया-सुत जाप सँ केन्हौं होतै अशोक
काल के प्रभाग शनिवार कहलैतै
मान-मरजादा एना शनिदेवें पैतै।
अनय अनीति देखि शनि झुंझलैतै
ऐसनोॅ लोग के शनि भीतरें सतैतै।
सुर-नर-नाग-यक्ष-गंधर्व-अप्सरा
किन्नर, धनी-गरीब, छोटा आरोॅ बड़ा
राजा-रंक कोय होय अनुशासन के
भंग करै तोड़ै जौं नियम शासन के
शनि केकरो के माफ करतै नै भूलि
दुख के समुन्दर में देतै सीधे ठेलि।
मनुष्य के उच्चस्थ शनि देतै सम्पदा
निम्नस्थ सें मनुष्यें पैतै दुःख-विपदा।
शनि के कहने छै
-”खुन पसीनोॅ एक करी
खेतोॅ में खटै किसान
मजूरा
मरै वहे भूखोॅ से
दुखिया के बल
बड़का-बड़का महलोॅ में
धनमान रहै
पर ऊ बेचारा
कोय तरह
टुटलोॅ-फुटलोॅ
जैसनोॅ-तैसनोॅ
झुग्गी में रहै
न पूछै कोय।
मौन भे
कखनोॅ-कखनोॅ सोचों
आरू
धनमानोॅ के
प्रभुता में पागल बनलोॅ
देवता-दनुज
किन्नर-गन्धर्व
आदमी के
जीबोॅ के
आरू कीट-पतंगोॅ के
हम्में न क्षमा करबै कहियो।
छै ई हमरोॅ सहजै प्रकृति
समता के हमरोॅ सहज दृष्टि
हम्में मानै छी यहाँ
न ऊचोॅ कोय कहीं
आरोॅ न कहीं
कोइये नीचोॅ
देवता आदमी
दोन्हू में नै भेद
सरग धरती पर
धरती पर सरग
दुनियां में मिलै अन्न सबके
दुनियां में मिलै वस्त्र सबके
आवास मिलै
वातास मिलै।
यै लेली जरै गुसांय कोय
ते जरै-जरै।“
पर्वत पर
पर्वत के नीचू घाटी में
आरोॅ गुफा-गुफा में
द्यावा-पृथिवी अन्तरिक्ष में
गागर में
रत्नाकर में
एन्हें-ऐन्हें जग्घोॅ में
शनि लौकतें
बिना आश्रय के लोगोॅ के
सेतै।
दुःखोॅ से कहियोनै डरतै
तूफानों में बाहर चलतै
हर शोषित सें मिलयें रहतै
हर शोशक के दलयें रहतै।
ओकरोॅ
आन्दोलन में भारी विश्वास
चाहतै दिसि दिसि सँ
सबके विकास
जन-जन के मन में
चिर हुलास।
शनि के रे ई सम्पूर्ण क्रांति सँ
अनाचार मिटतै
उत्पीड़न, दुर्विचार
शोषण
अनीति के दुष्प्रभाव
बहतै/मन के सबटा दुराव
डहतै।
ऐतै अच्छा विचार।
भागतै दीनता
पराधीनता कहीं दूर।
देवता के वैद्य होतै अश्विनी कुमार
करतै प्रानी के रक्षा आरोॅ उपचार।
अश्विने करतै व्यधि के उपशमन
आन्हर, अपंग, रोगी पैतै स्वस्थ तन।
आबाहन करतै जौं कोय यजमान
तुरंते सहाय होतै करिये पयान।
संसार बीच रवि के हेरैली किरन
ढूंढ़ि के निकालतै दोन्हू भाय तत्क्षण।
भगैतै अन्हार दोन्हू बटोर-बटोर
लानतै जरा इंजोर-भोर के इंजोर।
धरती के लोगें सब अस्तुति करीये
कल्यान चाहतै पूजा के हवि धरीये।
हे अश्विनौ गीत कोरा बनावों
सूरज-तनय रोज तोरा मनावों!
हे चिरजुवा, ई मिलौं मंत्र तोरा
जुग-जुग से बनलों रहौं दिव्य जोरा
हवि लेल अंगना-घरोॅ में बुलावों
सूरज-तनय रोज तोरा मनाबौं!
मानोॅ तों हमरोॅ यही प्रार्थना के
बरसा करोॅ हे मनो कामना के
यजमान लें तों निकोॅ चीज लाबोॅ
सूरज-तनय रोज तोरा मनाबों।
रजनी विदा पाय बहिनी उषा से
सूरज के रसता मिलै ऊ निशा से
दिन-रात हमरा सँ हिंसा भगवोॅ
सूरज-तनय रोज तोरा मनावोॅ!
नित फूल पत्ता सँ दुनियां सजाबोॅ
विश्वास दे, भय व आलस भगावोॅ
रोगो मिटावोॅ दरिद्दर भगावोॅ
सूरज-तनय रोज तोरा मनावोॅ!
सुरुज-बेटी दोसरी तपनी सुधरी
सुर-नर-सेविता बनतै बड़गरी।
संचरण नाम के नरेश रूपवान
रूपवती पति पैतै गुन के निधान।
एक देवनदी में यहो गिनली जैतै
तापती नागे लोक में ई भजली जैतै।
वसुंधरा के चमन राखतै गमन
भजन-कीर्त्तन एकरोॅ करतै जन
हे सूर्य कन्या नदी तापती हे
रोजे उतारों हमें आरती हे!
तोरॉे लगी तीर कीरंग सोहानोॅ
पावन सुघर अंग-अंगो लोभानोॅ
निर्मल सरलगति मनोहरमती हे
रोजे उतारों हमें आरती हे!
लहरै पवन संग तरगोॅ के आंचर
ऊपर में नीलोॅ सरगोॅ के सागर
निकलै सुगम गीत सुरभारती हे
रोजे उतारों हमें आरती हे!
हे माय, हौ पार नैया लगाहीं
तोरे लगे/ई मिलै सुख न काही
देवी सहनशील औढरमती हे
रोजे उतारो हमें आरती हे!
मैया,ख् पटैतेरोॅ भारत के धरती
वन-बाग-जंगल-नगर-गाँव-परती
हे सतपुरागिरि-विभा भगवती हे
रोजे उतारों हमें आरती हे!
हे संवरण के बसै राजरानी
हर साल पीतें रहै देश पानी
रजनी हंसै, दिन खिलै, मालती हे
रोजे उतारों हमें आरती हे!