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सतवाणी (14) / कन्हैया लाल सेठिया

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131.
दुरगम मोटै भाखरां
बसै एकलो ना’र,
रवै एक बिल ऊंदरा
डरता टोळ बणा’र,

132.
भाण कनै कुण जा सकै
धधकै अगन अपार,
लियाँ हथेली सांपड़त
सत रै बळ गिगनार,

133.
फल इसड़ा जिण नै चखै
कदेन बां रा बीज !
अनासगत बण तू इस्यो
परतख देख पतीज,

134.
दीठ थकी बा समझगी
निरथक जाण पिछाण,
पण तिसणां कद लेण दै
पलकां नै औसाण ?

135.
लिख्या न मैं खाता बही
कर्या न बाकी जोड़,
चाल्योड़ो गेलो कलम
म्हारी चाली छोड,

136.
उड्यो वायरै साथ तिण
सागो समझ अबूझ,
पड्यो अगन में पून नै
लेतो पैली बूझ,

137.
गैरो जा चावै हुवै
पींदै स्यूं साख्यात,
निज में देसी जळ धुआ
कादै भरिया हाथ,

138.
फिरा आंगळी परख तू
किसी’क तीखी धार ?
हुवै सुहागण रगत रै
छांटां स्यूं तरवार,

139.
देख काच में मोळियो
बांधै पेच सुंवार,
टीकण आई खिण गई
हूंती देख उंवार,

140.
दीठ गई पण नैण रो
खोखो साबत हाल,
उड्यो पंखेरू पण रयो
आळो तरवर डाळ,