सतवाणी (2) / कन्हैया लाल सेठिया
11.
स्याही कागद, कलम जड़
आखर है निष्प्राण,
सबद जलमसी जद हुसी
संवेदनमय प्राण,
12.
जकी चेतणां जीव में
बीं री कोनी आद,
मुगत हू’र परमाद स्यूं
कर अणभूत अनाद,
13.
पड़सी पाछो खेत में
ज्यासी किर्यो पिसीज ?
सकै जाण इण लिखत नै
न करसो न बीज !
14.
काळै माळां री रयण
दिन रा धवळा केस,
जद घर आवै कामणी
धणी जाय परदेस !
15.
सूरज कद आंधै उगै
न्यारी न्यारी ठौड़ ?
ओ तो मन रो देत है
किंयां नैण दै छोड़ !
16.
बरर्यो धारोधार पण
लियो बेकळू चोस,
ओळा भांज्या ठोकरां
जद जळ हुयो सदोष,
17.
काळ नहीं टूटै जकी
टूटै बा है दीठ,
काळा धोळा रात दिन
नैण विहग री बींठ,
18.
तिरवाळो घी तैल रो
दोन्यूं एक समान,
नहीं आंख पण नाक स्यूं
बां रो हुवै निदान,
19.
जका सूर रै वंस रा
सकसी झेल उजास,
चमचेड़ां ऊंदी लटक
तम में कारसी वास,
20.
जाऊं जाऊं मर करै
जाणो अंजळ धीन,
जार्यूं जिण खिण अणखसी
जामण मनै जमीन,