भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सतसंग बिना ना रंग चढ़े / शिवदीन राम जोशी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सतसंग बिना ना रंग चढ़े,
               बिन रंग चढ़े ना भक्ति मिले रे |
भक्ति मिले बिन राम न रीझत,
                 राम बिना नहीं फूल खिले रे |
फूल खिले बिन धूल ही है,
             मन भाग्य फटा वह कैसे सिले रे |
शिवदीन यकीन करो उर में,
              शुभ संत कृपा गिरिराज हिले रे |