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सता ले ऎ जहाँ, न खोलेंगे जुबाँ / शैलेन्द्र

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सता ले ऐ जहाँ, न खोलेंगे ज़ुबाँ
सितम तेरे कभी तो बेअसर हो जाएँगे
पुकारो लाख तुम, न फिर लौटेंगे हम
कि हम भी राह की इस धूल में खो जाएँगे
सता ले ऐ जहाँ

जलन दिल की तो कहती है, कि मैं उठ जाऊँ महफ़िल से
मगर उम्मीद दामन को मेरे छोड़ेगी मुश्किल से
थके हारे हैं हम, जहाँ टूटेगा दम
बिछाके सेज अंगारों की, चुप सो जाएँगे
सता ले ऐ जहाँ

किसीके प्यार का चंचल इशारा याद आता है
है कल की बात वो हर-हर नज़ारा याद आता है
मेरा दिल तोड़कर, वो होंगे बेख़बर
थी किसको ये ख़बर, वो क्या से क्या हो जाएँगे
सता ले ऐ जहाँ …

1961