भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सताना, बंद करो / प्रेमलता त्रिपाठी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सदा अँधेरे तीर चलाना,बंद करो ।
रास न आये रंग जमाना,बंद करो ।

अधिकारों की बातें करना,ठीक नहीं,
किस्सा अपना वही पुराना,बंद करो।

अंग भंग कर पुण्य धरा को,बाँट दिया ।
घायल माँ को और सताना, बंद करो ।

उर के दाहक चीर हरण कर,बैठ गये,
बातों से अब मन बहलाना, बंद करो।

हित चिंतन में बने विरोधी,आपस में
शब्दों के सब तीर चलाना,बंद करो।

दया प्रेम सद्भाव बसाओ,जन-जन में,
षडयंत्रों का पाठ पढ़ाना, बंद करो ।