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सताबै छै / कस्तूरी झा 'कोकिल'
Kavita Kosh से
अब जब आबै छै होली,
हमरा बड़ी सताबै छै।
प्राण पियारी दूर कहीं
कोय नैं पता बताबै छै।
सबकेॅ सामने गेली छै,
अब तॉय वू की सुत ली छै।
कहियो ई रंग रूसलै नैॅ
या थक्की केॅ बैठली छै।
सूरज पछिमें उगी जाय,
चंदा पूरबें डूबी जाय।
ईकहियों नै होतै जे,
कौशल्यॉ हमरा भूली जाय।
अगिनदेव केॅ बड़का साजिश
सुतली अगी जरैनॅ छै।
पवन देव केॅ मेल मिलाप सें
गगन देव नुकैनें छै।
जे बचलै गंगा गोदी मेॅ
सात समुद्र पहुॅचैनेॅ छै।
धरती माता मौन साधनेॅ
ई रंग नाच नचै ने छै
ढ़ोल बजाय केॅ गेली छैहो
ई रहस्य खुलबे करतैॅ
मोक्ष भेलो तऽ कुछ नै बोल बै,
धर्मराज सें केॅ डरतै?
24/3/2016 रात 9.40 बजे