सती परीक्षा / सर्ग 4 / सुमन सूरो
भैयारी बात-चीत
मुनि अगस्त के आश्रम सें लौटी केॅ ऐलै राजा राम।
आज्ञा पाबी भारी मन सें लौटी चललै पुष्प-विमान॥
रत्न-जटित सिंहासन के आसन छोड़ी द्वारी पर जाय।
द्वारपाल केॅ आज्ञा देलकै लानोॅ लछुमन भरत बोलाय॥
ऐलै लछमन भरत तुरत्तेे विनय जनैलकेॅ लै पग-धूल।
सुख सें हिरदय टलटल भरलै फुललै कमल-कुमुद के फूल॥
”दोनों हमरोॅ भुजावली आ तोहीं दोनों हमरोॅ आँख।
दूर भविष्यत् में बिचरै लेॅ तोहीं दोनों हमरोॅ पाँख॥
दोनों हिरदय-प्रान”-कही केॅ छाती लेलकै राम लगाय।
नेह-सुधा धारा में भीजी गद्-गद् भेलै दोनों भाय॥
मुनि अगस्त के आश्रम में जे सुनने छेलै कथा-पुरान।
एक-एक सब कही सुनैलकै गद्ग् मुक्त कंठ सें राम॥
कत्तेॅ देखलां देश-देशान्तर भरमी-भरमी चारो दीश।
पर नै भरलोॅ घाव मनोॅ के लागले रहलोॅ ओकरोॅ लीस॥
ई अशान्ति मन के नागिन रं चोट करैछै फन-फैलाय।
राजधर्म फैलेॅ, ई भागेॅ, सोचोॅ खोजोॅ उचित उपाय॥
राजसूय सें मित्र देवता वरुण पदोॅ पर बैठलै जाय।
राजसूय ने सोम देवता के कीर्ति देलकै फैलाय॥
राजसूय जग्गी सें राजा के फैलै छै शाश्वत नाम।
”की बिचार तोरा दोनों के?“ पूछी केॅ चुप भेलै राम॥
छनकी उठलै भरत बुझी केॅ राजसूय के जग्य-बिधान।
हिंसा-नाश-कलह-पीड़ा में धरती बनतै सिद्धि-मशान॥
रक्षक के हिरदय में उठलै कैहने ई भक्षक के भाव?
कहाँ मूल छै यै भावोॅ के हिलकोरै छै कोन अभाव?
कर जोड़ी केॅ दृढ़ भावोॅ सें, बोली में विनती के राग।
भरत कहैछै- ”भैया सोचोॅ तोहीं छोॅ धरती के भाग॥
रक्षा-खातिर जेना ताकै सब बच्चा ने बापोॅ केॅ॥
तेन्हैं सब राजां देखै छौं, दूर करोॅ सन्तापोॅ केॅ॥
राजसूय में सौंसे धरती होय जैतै नाशोॅ के ढेर।
मत नेतोॅ ई महाकाल केॅ मत टेरोॅ परलय के टेर॥
ओना तोरोॅ आज्ञा हरदम हमारा सब केॅ छै सिर-ताज।
ओकरोॅ आन पुराबै खातिर नै ऐबै कखनू भी बाज॥
लेकिन कलतक पालन कर्त्ता आय बिनाशक के ई रूप।
लोगें-वेदें कहतै अजगुत सब में भरतै भाव अनूप“॥
”साधु-साधु हे भरत“ कही केॅ रामें लेलकै कंठ लगाय।
छोड़ोॅ राजसूय के झंझट सोचोॅ कोनोॅ अन्य उपाय॥
बोली उठलै लखन- ”सुनैछी अजगुत अश्वमेघ के नाम।
ब्रमहत्या के पापोॅ सें उबरी केॅ बनलै इन्द्र महान॥
यै जग्गी सें दिन-दिन फैलै मान प्रतिष्ठा राजा के।
दिन-दिन सुजाला-सुफला धरती सुख समृद्धी परजा के॥
जों मंजूर हुअेॅ तेॅ भैया यही जग्य के करोॅ विधान।
एकरा सें राजा-परजा में बढ़तै रघुवंशी के मान॥
राम निहारै भरत, भरत ने देलकै सहमत शीश हिलाय।
रामें ने आदेश सुनैलकै- ”लागोॅ तैयारी में जाय॥“
”ब्राह्मण-श्रेष्ठ वशिष्ठ जबाली वामदेव कश्यप-समुमाय॥
सबकेॅ शुभ संवाद सुनाबोॅ सबकेॅ आनोॅ तुरत बोलाय।
शुभ लक्षण सें पूरोॅ घोड़ा, सब ऋषि-मुनि सें शुद्ध कराय।
पूरा सावधान होय छोड़ोॅ मन्ता आनेॅ तुरत पुराय॥
सुग्रीवोॅ केॅ खबर करोॅ जे सब विशाल बानर के साथ।
जग्य-भूमि के खुशी बटोरोॅ, पुण्य करीकेॅ हुअेॅ सनाथ॥
वीर विभीषण केॅ भी बोलोॅ- ”महाबली हे राक्षस-राज।
इच्छावारी राक्षस साथें जग्य-भूमि के बनोॅ समाज॥
आरो जत्तेॅ भूप-सनेही सेवक सहित बिराजेॅ जाय।
धर्मनिष्ठ ब्राह्मण जे दोसरोॅ देश गेलोॅ छै नेतोॅ जाय॥
तपी, व्रती, मुनि, ब्राह्मर्षि सब नारी सहित जग्य के ठौर।
आबी शोभा पुण्य बढ़ाबेॅ, हुनियें सब छेका सिर मौर॥
सूत्रधार-नट-नर्तक बोली रंग भूमि केॅ रचोॅ बनाय।
अति विशाल मंडप के रचना जग्य-वेदिका साथ सजाय॥
नदी गोमती के तीरोॅ पर, नैमिषबन छै बहुत पवित्र।
प्रकृति नटी के रंग भूमि छै, सुन्दर, सजलोॅ, सहज, बिचित्र॥
बिन बाधा सम्पन्न हुअेॅ जग, एकरा खातिर सभेविधान।
नैमिष बन में शुरू कराबोॅ, सब देखेॅ पाबेॅ कल्याण॥
सबकेॅ नेतोॅ भेजोॅ आरो सबके करोॅ उचित सत्कार।
तुष्ट-पुष्ट-सम्मानित लौटेॅ होला पर जगके निस्तार॥
दू-तिन लाख पशू पर लाघी खड़ा दूना के चावल जाय।
दस हजार पर चला-मूंग-तिल कुरथी उरिद नोन अगुवाय॥
वही हिसाबें तेल, दूध, घी चन्दन सभे सुगन्धित द्रव्य।
भेजोॅ पैहने नैमिष वन में शुरू करावै सोॅ ई जग्य॥
सौ करोड़ सें बेसी मोहर, सोनोॅ-चानी लेॅ केॅ साथ।
सावधान कुछ सेना साथें भेजी दहू भरत के हाथ॥
बीच-बीच में रस्ता बाटें, जाय लगाबेॅ हाट-बजार।
सब बनियाँ-व्यवसायी केॅ आदेश सुनाबोॅ करोॅ प्रचार॥
जुवक-रसोय्या नौड़ा-नफ्फर नौआ नौकर नौड़ी दाय।
सुन्दर-सुन्दर जुवती कन्रूा नारी सब जात्रा पर जाय॥
बढ़ई वैदिक, बालक, बुढ़वा, सब जुआन, सब मुनी-कुमार।
अन्तःपुर के सभे जनानी माता-दुलहिन-लोकाचार॥“
अटकी गेलै कंठ बीच कुछ, एक घड़ी चुप भेलै राम।
स्वस्थ कसी हिरदय के बान्हन, पलमें भेलै पूर्ण अकाम॥
”सीता के सोना के मुर्ती जैसे आगू सबके साथ“।
”जे आज्ञा“- बोली केॅ लछुमन खाड़ोॅ भेलै जोड़ी हाथ॥
घेरी लेलकै एक मौन ने कुछ पल मानोॅ तीनोॅ भाय।
एक बार में झाँसी उठलै सब सुध-बुध सुरता बिसराय॥
”शुभ कामोॅ में देर उचित नै- ”बलजोरी ठेली सबभाव।
तोड़लकै लछुमन ने चुप्पी दूर करलकै मौन तनाव॥
सरमजाम सब कथन मोताबिक पूरा हअेॅ लखन लौलीन।
लागी गेलै इन्तजाम में व्यग्र अहर्निश सहज प्रबीन॥
सेबक सहित महा तेजस्वी सब नरेश के बास बनाय।
खान-पान, कपड़ा-लत्ताके सभे व्यवस्था ठीक कराय॥
जग्य कर्म दीक्षा पारंगत पंडित ब्राह्मण लेकेॅ साथ।
भरत-शत्रुघन चललै नैमिष बन में तीर-धनुष ले हाथ॥
रसोय परोसै छै ब्राह्मण केॅ बानर सहित खुदे सुग्रीव।
सब स्त्री के साथ विभीषण सेबै उग्र तपस्वी जीव॥
कृष्णसार मृग के समान सब उत्तम लक्षण सें सम्पन्न।
कारोॅ रं के घोड़ा छोड़ी राम भेलै निश्चल निष्कम्प॥
कुछ ऋत्विज के साथ लखन केॅ देॅ देलकै रक्षाके भार।
नैमिष बन प्रस्थान करलकै सेना सहित जग्य कर्त्तार॥