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सत्य, अहिंसा, सेवा, संयम, सबके / हनुमानप्रसाद पोद्दार

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(राग गौड़मलार-ताल कहरवा)
 
सत्य, अहिंसा, सेवा, संयम, सबके साथ साधु-व्यवहार।
सर्वभूत-हितमें ही निज-हित समझ सदा करता आचार॥
वह पाता न कदापि यातना पुनर्जन्ममें किसी प्रकार।
जाता उच्च देवलोकोंमें, पाता दुर्लभ भोग अपार॥
पर जो इन शुभकर्मों द्वारा सदा पूजता श्रीभगवान।
इह-पर लोक-भोग-विषयोंसे मनमें रख विरक्ति मतिमान॥
भगवत्स्मृति, भगवत्सेवा ही होते जिसके लक्ष्य महान।
भगवत्प्रेम प्राप्त करता वह उज्ज्वल, मिटता तम-‌अज्ञान॥