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सदस्य:नीहारिका झा पाण्डेय

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ज्वलंत विषय

ज्वलंत विषय ढूंढ़ा ताकि उस पर कुछ लिखूं पाया हर चीज़ ज्वलनशील है

कभी देश तो कभी जनता जलती है कभी शांति तो कभी नैतिकता धधकती है

सर पर टोपी हाथ में सीधी छड़ी वाला वह युग बीत गया तन पर सूट, हाथ में बंदूक लिए शासक वह युग लूट गया

पाठकों ने कहा यह तो घिसा पिटा विषय है इस पर न लिखने को कुछ शेष है

लेकिन उन्हें न यह पता यह तो अवशेष है मूल बातें हैं लापता

भव्य समारोह की तैयारी थी गोरी काली कन्याओं की सभा लगाई थी आपस में गिट पिट कर सुंदरी का खिताब किसी ने जीत लिया

सारी जनता बौखलाई सी उमड़ी भीड़ देने बधाई क्या पता उसे यह ताज किसलिए दिया गया संस्कृति अपनी मर चुकी उसी के शोक पर मनाई जा रही खुशी।

कहीं देश फैशन परस्त, तो कहीं पस्त है कहीं नेताओं की तानाशाही तो कहीं जनता की किस्मत अस्त है इसी उलझन में फंसा ज्वलंत विषय न ढूंढ़ सका।