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सदा देश की आन पर / प्रेमलता त्रिपाठी
Kavita Kosh से
मिट गये जो सदा देश की आन पर।
फूल ही फूल बिछते रहें मान पर।
हो गये हैं विदा जो सदा के लिए,
गुनगुनाता हृदय आज बलिदान पर।
हो रही साँझ नभ तारिका छा रही,
छिप गया चंद्रमानो कहीं छान पर।
दे सबेरा सदा सो गया शूर जब,
नम नयन हो रहा वीर के प्राण पर।
गर्व से लग गले चल पड़े झूमते,
देश हित खेलते जो गये जान पर।
रज धरा की तिलक सम सजा जो लिए,
घोष करते रहे अंत तक शान पर।
प्रेम तुमको नमन नित करे भारती,
शीष नत है सदा मान सम्मान पर।